सत्यवान और सावित्री की कहानी.... एक नई नजर से
सत्यवान और सावित्री की कहानी मृत्यु पर दांपत्य के प्रेम के विजय की कहानी है, परंतु यह मानवगाधा, जैसा कि उसके कई लक्षणों से प्रतीत होता है,वैदिक युग के प्रतीकात्मक मिथकों में से है..सत्यवान अतंरात्मा है..जो अपने अंदर सत्ता के दिव्य सत्य को लिए है, परंतु वह अज्ञान और मृत्यु की पकड में उतर आया है..सावित्री दिव्य वाणी, सूर्य की पुत्री है..वह परम की सत्य की देवी है..जो नीचे उतरी है और उसने रक्षा करने के लिए जन्म लिया है.उसके भौतिक पिता अश्वपति तपस्या के स्वामी हैं..तपस्या है आध्यातमिक प्रयास की सांद्र उर्जा जो मर्त्यलोक से अमर्त्यलोकों तक उठने में हमारी सहायता करती है; दयुमत्सेन उज्जवल सेनाओं का स्वामी, सत्यवान का पिता दिव्य मन है, जो यहां अंधा पडा है, जिसने दृष्टि के स्वर्गिक राज्य को और उसके द्वारा महिमा के राज्य को खो दिया है. फिर भी यह केवल एक रुपक कथा नहीं है, इसके पात्र मानव रुप में गुण होकर जीवित- जाग्रत सचेतन शक्तियों के अवतार या निर्गत अँश है.. जिनके साथ हम ठोसं संसर्ग प्राप्त कर सकते है.वह मनुष्य की सहायता करने और उसे उसकी मर्त्य दशा से दिव्य चेतना और अमर जीवन का मार्ग दिखाने के लिए मानव शरीर धारण करते है.
साभार- सावित्री महाकाव्य द्वारा महर्षि अरविंद
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